12 अगस्त, शनिवार को चातुर्मास और पुरुषोत्तम महीने की एकादशी का संयोग बन रहा है। अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा आराधना के साथ ही पितरों की भी पूजा करने का विधान है। पुराणों के मुताबिक अधिक मास की एकादशी पर किया गया श्राद्ध और दान पितरों को संतुष्ट कर देता है।
हर साल 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इन बढ़ी हुई एकादशी में दूसरी 12 अगस्त, शनिवार को है। इस पवित्र महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को परम एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति हर प्रकार की तप-तपस्या, यज्ञ आदि से मिलने वाले फल के समान पुण्य प्राप्त करता है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके माहात्म्य से अवगत करवाया था।इस एकादशी व्रत को करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सुख-समृद्धि की भी मिलती है। इस दिन अपने पूर्वजों का ध्यान करने का विशेष महत्व बताया गया है।
12 अगस्त को आर्द्रा नक्षत्र, एकादशी और द्वादशी दोनों तिथियां रहेंगी। इस दिन हर्षण नाम का शुभ योग रहेगा। साथ ही दोनों तिथियां होने से उन्मीलनी महाद्वादशी का दुर्लभ शुभ संयोग बन रहा है। इस महायोग में स्नान-दान, व्रत और भगवान विष्णु की पूजा से महापुण्य मिलता है।जब एक ही दिन में एकादशी और द्वादशी, दोनों तिथियां हो जिसमें एकादशी तय समय से ज्यादा वक्त तक रहे और द्वादशी तिथी भी हो तो इसे महाद्वादशी या उन्मीलनी द्वादशी कहा जाता है। ये भगवान विष्णु की पूजा के लिए महासंयोग माना जाता है।
दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो।एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल एवं पंचामृत से विष्णुजी की पूजा करें।व्रत की सिद्धि के लिए घी का अखंड दीपक जलाएं। शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य मिलता है।
इन दोनों एकादशी के स्वामी विश्वदेव हैं और ये तिथि भगवान विष्णु से ही उत्पन्न मानी जाती है। वहीं, द्वादशी के स्वामी भी भगवान विष्णु ही हैं, इसलिए इन तिथियों के संयोग वाले दिन सूर्योदय से पहले पानी में गंगाजल और तिल डालकर नहाने का विधान पुराणों में बताया है।इस तरह के पुण्य स्नान के बाद भगवान विष्णु का अभिषेक किया जाता है। फिर दिनभर में जरुरतमंद लोगों को भोजन, कपड़े और अन्य जरूरी चीजें दान करनी चाहिए।
एकादशी तिथि पर श्राद्ध और तर्पण करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इसके लिए एक लोटे में जल भरें, जल में फूल और तिल मिलाएं। इसके बाद ये जल पितरों को अर्पित करें। जल अर्पित करने के लिए जल हथेली में लेकर अंगूठे की ओर से चढ़ाएं। कंडा जलाकर उस पर गुड़-घी डालकर धूप अर्पित करें। पितरों का ध्यान करें।
माना जाता है कि पितर स्वर्ग लोक, यम लोक, पितृ लोक, देव लोक, चंद्र लोक और अन्य लोकों से सूक्ष्म वायु शरीर धारण कर धरती पर आते हैं। वे देखते हैं कि उनका श्राद्ध प्रेम से किया जा रहा है या नहीं। अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं।पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज व दान करना पुण्यकारी होता है। इसलिए पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है और इन दिनों में दान और ब्रह्म भोज भी कराया जाता है।
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भोपाल | जबलपुर | बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने एक बार फिर अपने बयान से सबको चौंका दिया है | भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग करने वाले पंडित शास्त्री का कहना है की भारत में रहन
मुंबई | भोपाल | मध्यप्रदेश के छतरपुर के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पिछले कई महीनों से चर्चाओं में बने हुए हैं। कई लोग धीरेंद्र शास्त्री पर आरोप लगा रहे हैं, तो कई लोग उनका खुलकर समर्थन भी कर
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